Aman Mishra

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रुद्र : भाग-१२

              "जैसा कि हम सभी जानते हैं, पिछले दिनों कुल तेरह लोगों का अपहरण हुआ था। उनमें से तीन लोगों की लाशें भी बरामद हुई थीं। बाकी बचे हुए दस लोगों के परिजन और आम जनता इस वक्त काफी डरी हुई थी। लेकिन अब लोगों के दिल से डर निकल गया है, क्योंकि पुलिस ने न सिर्फ उन अपराधियों के गिरोह को पकड़ा, बल्कि  उन दस लोगों को सही-सलामत उनके घर भी पहुँचा दिया है। इस केस को सुलझाने के लिए कुछ ऑफिसर्स को चुना गया था। इस मिशन के लिए एसीपी रुद्र रघुवंशी ने खुद को खतरे में डाल लिया था। आज एक बार फिर पुलिस डिपार्टमेंट की बहादुरी के सामने एक मुजरिम झुक ही गया। अब हम जानेंगे कि कैसे एसीपी रुद्र और बाकी ऑफिसर्स ने लोगों की जान बचाई, बस एक छोटे से ब्रेक के बाद। देखते रहिए न्यूज़ लगातार, मेरे यानी संजय वर्मा के साथ।" टीवी पर न्यूज़ चल रही थी। 
              टीवी के सामने, सोफे पर रुद्र अपने परिवार वालों के साथ बैठा हुआ था। रुद्र की तारीफें सुनकर उसका पूरा परिवार काफी खुश था। रुद्र की माँ थोड़ा डर जरूर गयी थीं, लेकिन रुद्र के पिता ने उन्हें संभाल लिया था।

             "देखा! मेरा पोता कितना बहादुर है। बिल्कुल अपने दादा पर गया है।" रुद्र के दादा जी ने गर्व से कहा।

             "ये सही है। जब बचपन में रुद्र रात को डर जाता था या डॉक्टर के पास जाने के पहले ही रोने लगता था, तब तो आप कहते थे कि वो मुझपर गया है। अब कोई बहादुरी का काम करे तो आप पर गया है। " रुद्र के पिता ने नकली नाराजगी दिखाते हुए कहा।

           "हाँ। उसकी कुछ आदतें मुझपर गई हैं, और कुछ तुझपर।" दादाजी ने कहा।

           उनकी बात सुनकर सभी हँस पड़े। 

          "अरे हाँ! तुम लोगों को एक जरुरी बात बताना तो भूल ही गया। पिताजी, आपको को रविन्द्र याद है? मेरा बचपन का दोस्त।" पुरूषोत्तम जी ने अपने पिता रणधीर जी से पूछा।

          "वही ना, जो अक्सर परीक्षा के परिणाम आने के बाद हमारे घर आकर छुप जाता था।" रणधीर जी ने कुछ सोचते हुए कहा।

          "हाँ पिताजील वही रविन्द्र सिंह। अब वो एक जाना-माना डॉक्टर है।" पुरुषोत्तम जी ने मुस्कुराते हुए कहा।

          "अरे वाह! ये तो बहुत अच्छी बात है। वरना वो जब तेरी शादी में आया था, उस वक्त भी घूम-घूमकर आवारागर्दी कर रहा था। याद है ने बहु? " रुद्र के दादी ने अंजना जी से कहा।

          "हाँ माँ। अच्छे से याद है। वैसे आज आपको अचानक से उनकी याद कैसे आ गयी?" अंजना जी ने पुरुषोत्तम जी से पूछा।

          "वो बात ये है अंजना, वैसे तो रविन्द्र पिछले तीस सालों से दिल्ली में ही था। लेकिन अब वो वापस यहाँ आ रहा है, अपने पुराने वाले घर में रहने।" पुरुषोत्तम जी ने मुस्कुराते हुए कहा।

         "अरे वाह! ये तो बहुत अच्छा होगा। कितने साल बाद वंदना से मिलना हो पाएगा।" अंजना जी ने प्रसन्नता से कहा।

         "लेकिन अभी रविन्द्र और भाभी जी के आने में थोड़ा समय लगेगा। वहाँ दिल्ली में कुछ काम निपटा कर वो अगले हफ्ते यहाँ आ जाएगा। उससे पहले उसकी दोनों बेटियाँ आ रही हैं, कल सुबह की फ्लाइट से।" पुरुषोत्तम जी ने कहा।

         "तो उसकी बेटियाँ तो यहाँ पहली बार ही आ रही होंगी। एक काम कर बेटा, उन्हें यहीं बुला ले, जब तक रविन्द्र नहीं आ जाता।" रुद्र की दादी जी ने पुरुषोत्तम जी से कहा।

         "हाँ माँ। मैंने भी यही सोचा है। तब तक हम उनके घर की सफाई भी करवा देंगे।" पुरुषोत्तम जी ने कहा।

         "पापा ये रविन्द्र जी हैं कौन? क्या मैंने उन्हें कभी नहीं देखा?" रुद्र ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा।

         "नहीं बेटा, तू उनसे कभी नहीं मिला है। वो मेरा बचपन का दोस्त है। हमारे सामने वाला घर है ना, वहीं रहा करते थे वो और वंदना भाभी। उसके माता-पिता का एक एक्सीडेंट में देहांत हो गया था। उसके बाद वो यहाँ सब कुछ छोड़कर चला गया।" पुरुषोत्तम जी ने भावुक होते हुए कहा।

           "लेकिन अब वो वापस आ रहे हैं। आप ऐसी शक्ल के साथ उनसे मिलेंगे तो वो फिर आपको चिढ़ाने लगेंगे। वैसे उनकी बेटियाँ कितने बजे की फ्लाइट से आएँगी? और आप जा रहे हो ना उन्हें लेने?" अंजना जी ने माहौल हल्का करने की कोशिश करते हुए कहा।

           "उनकी फ्लाइट दस बजे पहुँच जाएगी। लेकिन मेरी एक खास मीटिंग है कल। इसलिए मैं तो सुबह आठ बजे तक घर से निकल जाऊँगा। उन्हें लेने किसी और को जाना होगा।" पुरुषोत्तम जी ने कहा।

           "वैसे तो मैं चला जाता, लेकिन कल मुझे मेरे एक पुराने दोस्त के यहाँ जाना है। उसने सत्यनारायण कथा का आयोजन किया है।" रणधीर जी ने कहा।

          "कोई बात नहीं पिताजी। रुद्र चला जाएगा उन्हें लेने। क्यों रुद्र?" पुरुषोत्तम जी ने रुद्र के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

           "म.....मैं? नहीं नहीं! कल मुझे एक जरुरी काम है तो.....। " रुद्र अपनी बात पूरी करता इसके पहले उसने अभय को दरवाजे से अंदर आते हुए देखा।

           "नमस्ते। कैसे हैं आप सभी?" अभय रुद्र के पास बैठता हुआ बोला।

           "हम सब एकदम ठीक हैं बीटा। तुम भी बिल्कुल सही टाइम पे आए हो। कल हमारे कुछ मेहमान आ रहे हैं, और रुद्र उन्हें एयरपोर्ट लेने जाने से मना कर रहा है। कहता है कल कौच जरूरी काम है।" अंजना जी ने शिकायती लहजे में कहा।

            "कल कौन-सा जरूरी काम है भाई? कल तो कोई मीटिंग वगैरह भी नहीं है।" अभय ने कुछ सोचते हुए कहा।

           "अरे कल मुझे इस अपहरण वाले केस की रिपोर्ट भेजनी है कमिश्नर साहब को। और आर्या से जुड़े कुछ मामलों की फाइलें भी देखनी हैं।" रुद्र ने अपनी व्यस्तता का कारण बताते हुए कहा।

          "अरे रिपोर्ट तो मैं, विराज, विकास या फिर विजय भी बनाकर भेज देगा। और जहाँ तक बात है फाइलों की, तो वो तू पाटिल से कहकर घर पर मँगवा लेना। या फिर शाम को तो तू फ्री हो जाएगा, तब चले जाना।" अभय ने बड़े ही आराम से कहा।

         अभय और भी कुछ बोलने ही वाला था, लेकिन उसके पहले ही उसे आभास हुआ कि रुद्र उसे गुस्से से घूर रहा था।

         "वाह! मतलब अब तो तुम जा सकते ही उन दोनों को लेने। अब तो कोई तकलीफ नहीं है ना?" रुद्र के दादा जी ने पूछा।

         "न.....नहीं, कोई तकलीफ नहीं है। वैसे अभय, एक काम कर, कल तू भी चल मेरे साथ।" रुद्र ने कहा।

         "मैं क्यों? मतलब मेरा वहाँ क्या ...... " 

         "वैसे अभय बेटा ये भी सही रहेगा। तुम भी चले जाना रुद्र के साथ, अगर कोई परेशानी ना हो तो।" पुरुषोत्तम जी ने कहा।

         "अरे इसे कोई परेशानी नहीं होगी। है ना अभय।" रुद्र ने अभय के पैर पर जोर से अपना पैर रखते हुए कहा।

         "आह......ह....हाँ....हाँ, मुझे कोई परेशानी नहीं है।" अभय ने अपनी चीख रोकते हुए कहा।

         "चलो अच्छा है। तुम बैठो अभय बेटा, मैं पानी भिजवाती हूँ।" कहकर अंजना जी रसोईघर की ओर चली गईं।

         "वैसे पापा, हम जिन्हें लेने एयरपोर्ट जाएँगे, उनके बारे में तो कुछ पता ही नहीं है। मतलब उनका नाम क्या है?" रुद्र ने पुरुषोत्तम जी से पूछा।

         "रविन्द्र की बड़ी बेटी का नाम है शरण्या सिंह और छोटी बेटी का शिवान्या सिंह। बाकी मैं तुम्हें बाद में उनका फोन नंबर भेज दूँगा रविन्द्र से लेकर।" पुरुषोत्तम जी ने कहा।

        "नहीं नहीं ! आप रविन्द्र अंकल को ही मेरा नंबर भेज दीजिएगा।" रुद्र ने तुरंत कहा।

         पुरुषोत्तम जी ने सहमति में सिर हिला दिया। कुछ देर बाद मुरली काका चाय-पानी लेकर आए। कुछ देर और बातें करने के बाद अभय वहाँ से जाने लगा। 

          "चलिए मैं चलता हूँ। नमस्ते।" अभय ने हाथ जोड़कर कहा।

          "रुक मैं तुझे बाहर तक छोड़कर आता हूँ।" रुद्र ने खड़े होते हुए कहा।

          रुद्र और अभय घर से बाहर निकल गए। सीढ़ियाँ उतरकर अभय जैसे ही नीचे आया, रुद्र ने पीछे से एक जोरदार चपत उसके सिर पर मारी।

          "आह.....क्या कर रहा है तू? पागल हो गया है क्या?" अभय ने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा।

          "तू पहले इधर आ।" कहते हुए रुद्र अभय को बगीचे की बेंच के पास ले गया और बिठा दिया।

          "तू जानता है ना मुझे लड़कियों से दूर रहना ही ठीक लगता है। पता नहीं क्यों लड़कियों के आगे मेरी बोलती बंद क्यों हो जाती है? अब तेरी वजह से मुझे उन्हें लेने जाना पड़ेगा।" रुद्र ने अभय को घूरते हुए कहा।

         "भाई मुझे कहाँ पता था कि आंटी जिन मेहमानों की बात कर रही थीं वो लड़कियाँ हैं? तू इतना मत सोच, हमें बस वहाँ जाना है, और उन्हें लेकर आना है। और तू कब तक इस तरह शर्माता फिरेगा लड़कियों से।" अभय ने कहा।

         "अब ज्यादा भाषण मत दे। सुबह टाइम पे आ जाना। साथ में चलेंगे।" रुद्र ने धीमी आवाज में कहा।

         "हाँ, अब आठ बज गए हैं। तो भी जाकर खाने के बाद खुद को तैयार कर लेना सुबह के लिए।" अभय ने रुद्र को चिढ़ाते हुए कहा।

         रुद्र ने एक सर्द निगाह अभय पर डाली। अभय वहाँ से धीरे से उठा और रुद्र को बाय बोलकर तुरंत अपनी बाइक पर बैठकर वहाँ से चला गया।

          अभय के जाते ही रुद्र भी घर के अंदर चला गया।








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              आर्या इस वक्त अपने घर के हॉल में सोफे पर बैठा हुआ था। उसने काले रंग का महँगा सूट पहन रखा था। उसने अपने दोनों हाथ सोफे पर टिका रखे थे और अपने बाएँ पैर को दाहिने पैर पर रखा था। 
             उसके सामने एक आदमी बैठा हुआ था। उस आदमी ने सफेद रंग की शर्ट के साथ नीली रंग की जीन्स की जैकेट और पैंट पहनी हुई थी। शक्ल से वह लगभग पैंतीस साल का लग रहा था। सामान्य कद का पतला हट्टा-कट्टा व्यक्ति था। उसके बाल थोड़े लंबे थे और फ्रेंच कट दाढ़ी थी।

           "मैंने तुम्हें यहाँ एक खास काम के लिए बुलाया है।" आर्या ने अपनी उसी सख्त आवाज में कहा।

           "बोलो ना भाई क्या काम है?" आर्या के सामने बैठे आदमी ने कहा।

           "तुझे एक आदमी पर नजर रखनी है। बस इतना ही पता करना है कि वो कब घर से निकलता है, और कब घर जाता है। उसके अलावा वो दिन भर कहाँ-कहाँ जाता है। बस, इससे ज्यादा कुछ नहीं।" आर्या ने गंभीर स्वर में कहा।

           "बस इतना-सा काम? भाई ये राणा तो मर्डर वगैरा के लिए फेमस है। किसी का एक्सीडेंट करवाना है या फिर सीधा गोली मारने का है तो वो भी बोलो ना।" उस आदमी ने थोड़ी उदासी के साथ कहा।

          आर्या अचानक से उठ खड़ा हुआ और राणा की तरफ झुक कर उसे गुस्से से घूरने लगा। आर्या के इस रूप को देख वह आदमी काफी सहम गया। उसने थूक गटका और खुद को सोफे के अंदर धँसाने की नाकाम कोशिश भी की।

          "जितना बोला उतना कर। अपनी सड़ी हुई अक्ल अपने पास रख। अगर तेरी वजह से उस आदमी को एक खरोच भी आई ना, तो तू सबके लिए गायब हो जाएगा। उसे मैं अपने हाथों से मारूँगा। समझा?....समझा क्याss....!!?" आर्या ने चीखते हुए कहा। 

            उस आदमी ने तुरंत अपने हाथ कानों पर रख लिए और लगातार 'हाँ' में सिर हिलाने लगा।

            आर्या ने अपनी जेब में से एक तस्वीर निकाली और उसे टेबल पर उल्टा रखकर सोफे पर बैठ गया।

           "ये फोटो ले। इसी का पीछा करना है तुझे।" आर्या ने अपनी आंखों से टेबल पर राखी तस्वीर की ओर इशारा करते हुए कहा।

          राणा ने बड़ी मुश्किल से इस तस्वीर को उठाया और उसे गौर से देखा। तस्वीर देखते ही मानों उसको बिजली का झटका लगा हो। उसकी आँखें आश्चर्य से चौड़ी हो गई।  उसने बड़ी मुश्किल से अपना मुँह खोला और हिचकिचाते हुए कहा, "य.......ये तो......."

           "हाँ। ये रुद्र रघुवंशी है। इस शहर का नया एसीपी। कोई तकलीफ है क्या तुझे?" आर्या ने अपनी एक भौंह चढ़ाते हुए पूछा।

          "न..... नहीं....मुझे कोई तकलीफ नहीं है। काम हो जाएगा।" राणा ने कहा और उस तस्वीर को लेकर वहाँ से चला गया।

          आर्या अभी भी उसी तरह सोफे पर बैठा हुआ था। उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी।










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स्थान : मुंबई हवाईअड्डा
          

                सुबह के साढ़े नौ बजे रहे थे। एयरपोर्ट पर काफी भीड़ थी। आने वाले लोगों के परिजनों की संख्या कुछ ज्यादा ही थी। एयरपोर्ट पर अभी कुछ देर पहले ही घोषणा हुई थी कि, दिल्ली से आ रही फ्लाइट बिल्कुल सही समय से उड़ रही है। काफी सारे लोग अपने हाथों में एक बोर्ड लेकर खड़े थे, जिसपर बड़े-बड़े अक्षरों में उस व्यक्ति का नाम लिखा गया था, जिसे वे लेने आये थे।
               
               उसी भीड़ में रुद्र और अभय भी खड़े थे। रुद्र और अभय ने गॉगल्स पहने हुए थे।रुद्र ने सफेद रंग की टीशर्ट के साथ काले रंग का जैकेट और नीली जीन्स पहनी हुई थी। अभय ने काले रंग की टीशर्ट के साथ क्रीम कलर की जीन्स पहनी हुई थी। रुद्र के हाथ में एक सफेद रंग का बोर्ड था, जिसपर शरण्या और शिवान्या लिखा हुआ था।

             "यार और कितना इंतजार करना पड़ेगा। आज समय कुछ ज्यादा ही धीरे बीत रहा है।"रुद्र ने बोरियत से कहा।

             "बस आधा घंटा बाकी है भाई। सब्र कर थोड़ा।" अभय ने अपनी घड़ी देखते हुए कहा।

             रुद्र ने कुछ कह नहीं, बस अपना सिर झुका कर खड़ा रहा।
    
             कुछ देर बात घोषणा हुई कि दिल्ली से आने वाली फ्लाइट आ चुकी है। इतना सुनते ही रुद्र के चेहरे पर राहत दिखाई पड़ी। रुद्र और अभय उस ओर देखने लगे जहाँ से फ्लाइट के यात्री आ रहे थे। अचानक रुद्र का फोन बजा। उसने फोन उठाया और कहा, "हेलो, को बोल रहा है?"

            "हेलो। मेरा नाम शरण्या है। वो पापा ने आपका नंबर दिया था। आप इस वक्त कहाँ हैं?" फोन के दूसरी तरफ से बहुत ही प्यारी आवाज आयी।

           एक पल के लिए तो रुद्र उस मधुर आवाज में खो सा गया, फिर उसने खुद को संभाला और कहा, "जी हम यहीं हैं। हमारे हाथ में आपके नाम का बोर्ड भी है। देखिए मैंने बोर्ड ऊपर किया हुआ है।" रुद्र ने बोर्ड हवा में ऊपर करते हुए कहा। वैसे तो वहाँ और भी कई लोगों ने बोर्ड हवा में ऊपर किए हुए थे, मगर रुद्र का काम हो गया। 

             फोन के दूसरी ओर से आवाज आयी, "जी मैंने आपको देख लिया। हम अभी वहाँ आते हैं।" कहते हुए उस लड़की ने फोन काट दिया।

            रुद्र ने सामने देखा। वहाँ से एक लड़की उन्हीं की ओर चली आ रही थी। वह लड़की रुद्र की तरफ देख अपना हाथ भी हिला रही थी। उस लड़की ने सफेद रंग की कुर्ती और नीले रंग की जीन्स पहनी हुई थी। साथ ही उसने एक काले और सफेद रंग का डिज़ाइनर स्कार्फ़ लिया हुआ था। उस लड़की का रंग गोरा था और उसके बाल भी खुले हुए थे। उसके बाएँ हाथ में घड़ी और दाहिने हाथ में दो कंगन थे। रुद्र तो जैसे उस लड़की की मुस्कान में खो गया। उसे पता ही नहीं चला कब वो लड़की उसके सामने पहुँच गयी और उससे बात करने की कोशिश कर रही थी। रुद्र तो बस अपलक उसे देखे जा रहा था।











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               क्या हो रहा है रुद्र को? कैसे आगे बढ़ेगी रुद्र और शरण्या की कहानी? क्या सोच रखा है आर्या ने? जानने के लिए अगले भाग का इंतजार करें।

                                                 - अमन मिश्रा
                                                         🙏
         

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1 Comments

BhaRti YaDav ✍️

30-Jul-2021 06:49 AM

Nice

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